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देवरी ; हर्ष का जलवा बरकरार रह सकता है

रवींद्र व्यास 

                        1957  में  अस्तित्व में आई एम् पी  के  सागर   जिले    देवरी  विधानसभा  सीट, अपनी ऐतिहासिक पृष्टभूमि के लिए  जानी  जाती  है | 17 वि शताब्दी में इस नगर को चंदेल राजा द्वारा बसाया गया था , इसके नाम भी कालांतर में बदलते रहे , उस दौर में इस  शहर में एक मंदिर बनवाया गया था ,बाद में  उसी के नाम से इसका नाम देवरी पढ़ गया | जिसका अर्थ है “देव निवास” संभवतः: इससे पवित्र नाम इस शहर को कोई दूसरा  मिल भी नहीं पाता | जहां देवों  का वास हो वहां भला असमानता कैसे हो सकती है , शायद इसीलिए कांग्रेस और बीजेपी को यहां बराबर का मौका मिला |    1977 से अब तक हुए दस चुनावों में यहां से  कांग्रेस और बीजेपी  5 -5 बार चुनाव जीती है | 2013 और  2018  में  यहां से कांग्रेस के हर्ष यादव  चुनाव जीत  कर विधायक बने   ,कांग्रेस की कमलनाथ सरकार में वे मंत्री भी रहे | दरअसल इस विधानसभा सीट के समीकरण ही कुछ ऐसे हैं जो बीजेपी के अनुकूल नहीं हैं , इसके बावजूद बीजेपी इस सीट पर अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज किये हुए  है | |

                         देवरी   विधानसभा क्षेत्र  तीन क्षेत्रों में विभक्त है ,जिसमे  देवरी ,केसली और गौरझामर क्षेत्र आते हैं ,| देवरी और केसली  तहसील क्षेत्र के गांवों को मिलाकर यह  विधानसभा क्षेत्र बना है |प्राकृतिक वातावरण से संपन्न यह क्षेत्र   नौरादेही अभ्यारण्य से लगा हुआ है |  दमोह जिले से सीमा लगने के कारण  यह क्षेत्र दमोह संसदीय क्षेत्र में आता है

                        2  लाख 8  हजार 962  मतदाता वाले इस विधानसभा क्षेत्र में 110788 पुरुष और 98172 महिला तथा 2 अन्य मतदाता हैं | सागर जिले की  सबसे ज्यादा 23. 53 फीसदी आदिवासी मतदाता इसी विधानसभा  क्षेत्र में हैं | चुनावी समीकरण को यहां के 35 फीसदी पिछड़ावर्ग ,13. 39 फीसदी अनुसूचित जाति , के मतदाता प्रभावित करते हैं | इनके अलावा सामान्य वर्ग के 24. 08 फीसदी , मुस्लिम समाज के 3 फीसदी और अन्य 1 फीसदी  मतदाता  चुनावी रुख में बड़ा परिवर्तन लाते हैं |  96 फीसदी  हिन्दू आबादी के समीकरण को विभाजित करने के जतन  देवरी विधान सभा क्षेत्र में कहीं ज्यादा तीव्रता से किये जा रहे हैं |

                        विधान सभा  क्षेत्र  का 92% इलाका ग्रामीण क्षेत्र  का है , मुख्यतः कृषि और वनोपज पर आधारित है |  यहाँ कोई औधोगिक कारोबार नहीं है | व्यापार और सीमित नौकरियां ही यहाँ का मुख्य  आर्थिक आधार है |  रोजगार की तलाश में पलायन एक बड़ी समस्या है | वर्ष के चार माह के लिए यहां से बड़ी संख्या में मजदूर  महानगरों की ओर जाते हैं |   बेरोजगारी यहां की स्थाई नियति है ,  रेलवे लाइन भी एक बड़ा मुद्दा है |  शिक्षा , स्वास्थ्य ,और बिजली की समस्या अपनी जगह है | अधिकाँश इलाका कृषि पर निर्भर है इस कारण सिचाई सुविधा की मांग हर चुनाव में एक स्थाई मुद्द्दा रहता है | यहाँ की बहुसंख्यक आदिवासी आबादी प्रशासनिक प्रक्रिया  से त्रस्त है | केसली तहसील के ही अनेकों गाँवों के बिजली ट्रांसफार्मर जले होने पर महीनो नहीं बदले जाते |

                                   देवरी  विधानसभा सीट 1957  से ही  अस्तित्व में  आई थी । 1957  से 1972 के दौर में हुए चार  चुनावों में यहां कांग्रेस  का ही प्रभुत्व रहा है | 1957  और 1972  में यहाँ से कांग्रेस ने चुनाव जीता था | 1962 में प्रजा सोसलिस्ट पार्टी ने और 1967 में यहाँ से जनसंघ के परशु राम साहू ने चुनाव जीता | परशुराम साहू इस विधानसभा से ऐसे प्रत्याशी रहे जो चार बार चुनाव जीते और दो  बार हारे | 1977 से अब तक हुए दस चुनावों में यहाँ पर कांग्रेस और बीजेपी ने पांच पांच बार चुनाव जीता है | 2003 और 2008 में बीजेपी  लगातार  चुनाव जीती | कांग्रेस ने भी अपनी इस हार का बदला 2013  और 2018  में लिया | दोनों चुनाव कांग्रेस के हर्ष यादव ने जीता | वे कमलनाथ सरकार में मंत्री भी थे |  

                                    2003 के  विधानसभा चुनाव में यहाँ से बीजेपी के रतन सिंह सिलारपुर ने  कांग्रेस के हर्ष यादव को 11371 मत से हराया था | 2008 के चुनाव में कांग्रेस ने हर्ष यादव की जगह कांग्रेस के पूर्व विधायक बृज बिहारी पटेरिया को प्रत्याशी बनाया था  , वे भी बीजेपी के भानु राणा से  ११५०५ मत से चुनाव हार गए | 1998 के चुनाव में ये दोनों प्रत्याशी आमने सामने थे , तब यहाँ से ब्रज बिहारी चुनाव जीते थे | २००८ में भानु राणा ने ९८ की हार का बदला ले लिया | 2013 में कांग्रेस ने एक बार फिर से हर्ष यादव को प्रत्याशी बनाया उन्होंने बीजेपी के रतन सिंह सिलारपुर से 2003 की हार का बदला दुगने मत से चुनाव जीत कर लिया | 2018 में भी हर्ष यादव ने बीजेपी के तेजी सिंह राजपूत को 4304 मत से पराजित किया | लगातार दो बार जीतने का उन्हें उपहार भी मिला और वे कमलनाथ सरकार में मंत्री भी बनाये गए | 

                                   इन चुनावी घमासान के बीच अगर देखा जाए तो यह विधान सभा क्षेत्र  कांग्रेस के लिए ज्यादा अनुकूल माना जाता है | अगर पिछले चार चुनावों का औसत देखा जाए तो बीजेपी और कांग्रेस के मत प्रतिशत में ज्यादा अंतर देखने को नहीं मिलता है | बीजेपी के औसत मत 38 . 93 % हैं वहीं कांग्रेस के 38. 42 प्रतिशत हैं | कांग्रेस के हर्ष यादव को 2013 में जहाँ 52 फीसदी मत मिले थे, २०१८ के चुनाव में उनके मत में 4. 51 फीसदी की गिरावट देखने को मिली \ जब की बीजेपी के वोट में २०१३ के तुलना में 8. 71 फीसदी की वृद्धि देखने को मिली | दरअसल  2018 में   यहां  कर्ज माफ़ी , बेरोजगारी भत्ता ,और बिजली के मुद्दे ने   कांग्रेस  को बढ़त दिलाई थी | इन सबके बावजूद जातीय समीकरणों  का असर  भी देखने को मिला था |

                                2023 का चुनाव जीतने के लिए  जातीय समीकरण को साधने का समीकरण दोनों ही प्रमुख दल बना रहे हैं , इसी क्रम में अलग समाज के लोगों की अपनी अलग पंचायत और बैठक कराई जा रही हैं  |  कांग्रेस  यहां पिछले कुछ समय से  कुछ ज्यादा ही सक्रिय हुई है , उसके पास मुद्दों की कमी नहीं है , खराब कानून व्यवस्था , प्रशासनिक  निरंकुशता ,  सिंचाई सुविधा , बेरोजगारी ,महंगाई और भ्रष्टाचार, के साथ ओबीसी के आरक्षण  ,जैसे  मुद्दे  है | दूसरी तरफ  बीजेपी   कांग्रेस विधायक पर कार्य नहीं करने , विकास नहीं करने का आरोप लगाती है | सीएम शिवराज सिंह चौहान द्वारा की जा रही ताबड़ तोड़ घोषणाएं ,जिनमे लाड़ली लाड़ली बहना योजना मुख्य है चुनाव में बड़ा परिवर्तन करा सकती है |  इन सबके बीच बीजेपी ने यहाँ के लिए एक बड़ा खेल भी किया है यहाँ के प्रमुख कोंग्रेसी नेता रहे पूर्व विधायक  ब्रजबिहारी पटेरिया को बीजेपी में साम्मलित कर लिया है | उनका इस विधान सभा क्षेत्र में अच्छा खाशा असर माना जाता है |

 कौन जीता-

2018 जीते–   हर्ष यादव  _ कांग्रेस

2013जीते –   हर्ष यादव  _ कांग्रेस       

2008: जीते-  भानु राणा   _ बीजेपी   

2003 :जीते– रतन सिंह सिलारपुर  _ बीजेपी 

 1998 _जीते_ ब्रज बिहारी पटेरिया कांग्रेस

  1993 _जीते _सुनील जैन कांग्रेस 

1990 _जीते _ परशुराम साहू_ बीजेपी 

1985 जीते  _भगवत सिंह _ कांग्रेस 

1980 _ जीते _ परशुराम साहू _ बीजेपी 

1977 _ जीते _ परशुराम साहू _ जनता पार्टी 

1972 _ जीते _द्वारिका प्रसाद कटारे _ कांग्रेस 

1967 _  जीते _  परशुराम साहू _ जनसंघ 

1962 _ जीते _ कृष्ण कुमार गौरी शंकर _पी एस पी 

1957 _ जीते – बाला प्रसाद मिश्रा _ कांग्रेस 

                                दरअसल देवरी विधानसभा सीट  एक ऐसा विधान सभा क्षेत्र है जहां  वर्तमान में राजनैतिक गुटबाजी चरम पर है | देवरी विधानसभा क्षेत्र से दोनों ही दलों में दावेदारों की लम्बी सूचि है | हालांकि यहां से कांग्रेस वर्तमान विधायक हर्ष यादव को ही प्रत्याशी बनाएगी |  हर्ष यादव यहाँ की गुटबाजी से भी भली भांति परिचित हैं | वे   2003 का  चुनाव  अपने ही दल के बागी प्रत्याशी के कारण  हार गये थे  | 1993 में यहाँ से कांग्रेस विधायक रह चुके सुनील जैन ने बगावत कर  निर्दलीय चुनाव लड़ा था  | “हम तो डूबेंगे सनम तुमको भी ले डूबेंगे ” कहावत को चरितार्थ करते हुए कांग्रेस प्रत्याशी हर्ष यादव को हारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई | बीजेपी से भानु राणा , और संदीप जैन  मुख्य दावेदार बताये जा रहे हैं |  प्रत्यासी के सामने आने तक कांग्रेस यहाँ मजबूत स्थिति में बताई जाती है |

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