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श्रीं आर्यरक्षित सूरि जैन तीर्थ धाम में द्वारोद्घाटन के साथ प्रतिष्ठा समारोह का हुआ समापन

महावीर अग्रवाल 

मन्दसौर १६ दिसंबर ;अभी तक;  आचार्य श्री अशोकसागरसूरिश्वरजी म.सा. की पावन प्रेरणा व निश्रा में कल शनिवार को नवनिर्मित श्री आर्यरक्षितसूरि जैन तीर्थधाम में श्री उवसग्गहरं पार्श्वनाथ के मंदिर के द्वार का उद्घाटन किया गया। इस द्वारोद्घाटन समारोह के सम्पन्न होते समय बड़ी संख्या में ट्रस्ट मण्डल के सदस्यगण, उनके परिवारजन व नगर के गणमान्य नागरिकगण भी उपस्थित थे।
                                     आचार्य श्री अशोकसागर सूरिश्वरजी म.सा., आचार्य श्री सोम्यचन्द्रसागरसूरिश्वरजी म.सा., आचार्य श्री विवेकचन्द्रसागरसूरिश्वरजी म.सा., आचार्य श्री मतिचन्द्रसागरसूरिश्वरजी म.सा., प.पू. प्रवर्तक श्री धैर्यचन्द्रसागरजी म.सा. की पावन निश्रा में शनिवार को प्रातः 7 बजे शुभ मुहुर्त में नवनिर्मित मंदिरजी के द्वार को खोला गया। प्रभुजी के पहले अभिषेक एवं मंगल दीपक आरती का धर्मलाभ कुशालचन्द्र खमेसरा परिवार की ओर से उनके पुत्र धर्मेन्द्र व चेतन खमेसरा ने लिया। द्वार उद्घाटन के उपरांत सभी श्रावक श्राविकाओं ने मंदिर में प्रवेश किया। आचार्य श्री अशोकसागरसूरिश्वरजी म.सा. की पावन निश्रा में इस अवसर पर पहली स्नात्र पूजा, पहली केसर पूजा, पहली आरती, पहले मंगल दीप की आरी व प्रभुजी की प्रतिमा को मुकुट चड़ाने का चड़ावा बोला गया जिसका धर्मलाभ मंदसौर के लोढ़ा, खमेसरा, भण्डारी आदि परिवारांे ने बोली लगाकर प्राप्त किया। इस अवसर पर आचार्य श्री व साधु साध्वियों को कम्बली ओड़ाने की बोली भी लगाई गई। जिसका धर्मलाभ मोहनबाई रतनलालजी खमेसरा परिवार व कुशालचंद खमेसरा परिवार ने लिया। गुरू प्रतिमा की आरती का लाभ शांतिलाल लोढ़ा ने लिया।  आचार्य श्री अशोकसागरसूरिश्वरजी म.सा. को काम्बली राजेन्द्र खमेसरा, मुकेश खमेसरा, अभिषेक खमेसरा, प्रियांश खमेसरा एवं चेतन व धर्मेन्द्र  खमेसरा ने ओड़ाई। द्वारोद्घाटन कार्यक्रम के उपरांत उपस्थित धर्मालुजनों हेतु पुनमचंद डांगी परिवार की ओर से नवकारसी का आयोजन किया गया। जिसका धर्मलाभ दिलीप डांगी, विजय, महेन्द्र व हिम्मत डांगी ने प्राप्त किया। इस अवसर पर प्रभु पार्श्वनाथजी की प्रतिमा के संबंध में विभिन्न बोलिया भी लगाई गई। जिसमें बड़चढ़कर धर्मालुजनों ने चड़ावे बोलने का धर्मलाभ लिया। दोपहर में वीरेन्द्र भण्डारी परिवार की ओर से नवनिर्मित जिनालय में सत्तरभेदी पूजा भी हुई जिसमें अप्रेश व श्वेता भण्डारी ने पूजा कराने का धर्मलाभ लिया। पूजा की विधि अरविन्द चौरड़िया इंदौर ने विधि विधान से पूर्ण कराई।
                             आचार्य श्री अशोकसागरजी म.सा. ने धर्मसभा में कहा कि आचार्य श्री आर्यरक्षित सूरि युग प्रधान जैनाचार्य थे वे मंदसौर  की पूण्य धारा पर जन्में और दीक्षा के बाद उन्होनंे जैन धर्म की खूब प्रभावना की। वे कई भाषाओं के ज्ञाता व विद्वान जैन आचार्य थे। उनका नाम कल्पसूत्र जो कि जैन धर्म का सबसे महत्वपूर्ण शास्त्र है उसमें अंकित है। उन्हीं के कारण मंदसौर जो कि उस समय दशपुर नगरी के नाम से जाना जाता था उसका नाम भी अंकित है। ऐसे संत के नाम पर इस तीर्थ धाम की स्थापना हुई है।
                              प्रवर्तक श्री धैर्यचन्द्रसागरजी म.सा. ने कहा कि प्रत्येक जैन धर्मावलम्बी को जीवन में नियमों का पालन करना चाहिये। जिसमें रात्रि भोजन त्याग, जमीकंद त्याग शामिल है। बड़ी पर्व तिथि अष्टमी, चौदस को भी रात्रि. भोजन व जमीकंद तो छोड़ना ही चाहिये। आपने कहा कि यह तीर्थ किसी पंथ का नहीं है बल्कि जैन अजैन सभी इस तीर्थ में आकर प्रभु दर्शन का धर्मलाभ ले सकते है। बाहर से कोई भी मेहमान आये तो उसे इस तीर्थ में जरूर लावे। संचालन ट्रस्ट के उपाध्यक्ष मुकेश खमसेरा ने किया तथा आभार सचिव दिलीप डांगी ने माना।
                                 इस अवसर पर श्रीं आर्यरक्षित सूरि धाम जैन तीर्थ ट्रस्ट के अध्यक्ष शांतिलाल लोढ़ा (हिम्मत होम), उपाध्यक्ष मुकेश खमेसरा, सचिव दिलीप डांगी, सहसचिव दिलीप कुमार संघवी, कोषाध्यक्ष अनिल संघवी, ट्रस्टीगण लक्ष्मीलाल भण्डारी, नेमकुमार संघवी,  हिम्मत डांगी, विरेन्द्र भण्डारी, समाजसेवी हिम्मत लोढ़ा, कपिल भण्डारी, शैलेन्द्र भण्डारी, अभिषेक खमेसरा, चेतन खमेसरा, धर्मेन्द्र खमेसरा,  अजीत नाहर, विजय डांगी, प्रियांश डांगी, संजय दक, विपिन संघवी, सुरेन्द्र भण्डारी, अजीत संघवी, सुनील दक अभिषेक ट्रेवल्स, छोटेलाल जैन, रखबचंद जैन किर्लोस्कर, भरत संघवी, प्रदीप छाजेड, महेन्द्र मालपुरिया, सुशील संघवी सहित कई गणमान्य नागरिकगण उपस्थित रहे।

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